बीती विभावरी जाग री
आज दिनांक ९.२.२४ को प्रदत्त स्वैच्छिक विषय पर प्रतियोगिता वास्ते मेरी प्रस्तुति;-
.......... बीती विभावरी जाग री........
रवि देव प्रसन्न हुए हैं आभा अपनी बिखराए हैं,
हर कर सभी तिमिर जगती का अनुपम प्रकाश फैलाएं हैं।
यही कार्यक्रम है प्रकृति का संदेशा मानव को देता है,
न करना रंज कभी दुखों का ,दुख के बाद सुख ही आता है।
सुख-दुख तो आते जाते हैं,कभी न प्रभावित होना है,
दुख हैं एक परीक्षा मानव की कभी न साहस खोना है।
दुख तो होते हैं क्षणिक कभी कर्तव्य -पथ से न हटना री,
सुख भी आना है निश्चित तू प्रयत्न तो करते जाना री।
मानव-तन तो उस परम-पिता ने ख़ुश हो तुझे दिया होगा,
कर्तव्य न भूले खुशियों में दुख का भी दिन भेजा होगा।
बहुधा मानव खुशियां पा कर गर्वित हो इठलाता है,
दुख मे ही वह अपने दुश्कर्मों की याद कर प्रायश्चित करता है।
नयी ऊर्जा,नया उत्साह देने प्रभात है आया री,
नये सपनो का श्रंगार करो अब बीती विभावरी जाग री।
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़
Ajay Tiwari
10-Feb-2024 09:20 AM
Nice👍
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
10-Feb-2024 06:41 AM
बहुत ही खूबसूरत और संदेश देती हुई रचना,,,, बेहतरीन अभिव्यक्ति
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